नई दिल्ली: मॉनसून सत्र से पहले संसद (parliament) में कई शब्दों पर पाबंदी लगाये जाने का ऐलान किया गया था, इन में जुमलाजीवी, तानाशाह, शकुनि, जयचंद, विनाश पुरुष, खून से खेती आदि शब्दों को असंसदीय शब्द बताकर इनकी लिस्ट तैयार की गई. लोकसभा सचिवालय के मुताबिक, अब इनको संसद में कार्यवाही या बहस के दौरान नहीं बोला जा सकेगा.
इस पर विपक्ष केंद्र सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस समेत बहुत सी विपक्षी पार्टियों ने इसकी आलोचना की
हालांकि बाद में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Om Birla) ने इस पर बयान दिया है. उन्होंने कहा, “कोई शब्द प्रतिबंधित नहीं है, निकाले गए शब्दों का संकलन जारी है मेरे संज्ञान में आया है कि लोकसभा सचिवालय ने कुछ असंसदीय शब्दों को विलोपित किया है. यह लोकसभा की प्रक्रिया है. 1959 से चल रही है. संसद में चर्चा और संवाद के दौरान आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं उस वक्त पीठासीन अधिकारी कुछ शब्दों को हटाने का निर्देश देते हैं, जो चर्चा कर रहे हैं उनको संसदीय परंपरा की जानकारी नहीं है. जब आवश्यकता होती है उसे विलोपित किया जाता है. यह सब सदस्यों की जानकारी में होता है . यह अधिकार हमें है. नियम के तहत है, शब्दों को बैन नहीं किया है. भ्रम की स्थिति ना पैदा करें.”
इस पर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने ट्वीट कर कहा, “ओम बिरला का ‘असंसदीय’ शब्दों के बारे में स्पष्टीकरण का कोई ज्यादा मतलब नहीं है. चर्चाओं और अपने रिपोर्ट में मीडिया इस बात की अनदेखी करेगी, जिसमें ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया गया हो. साथ ही प्रिंट मीडिया को भी अपनी रिपोर्ट में इन शब्दों का प्रयोग करने से पहले दो बार सोचना होगा.”
Clarification from @ombirlakota about ‘unparliamentary’ words doesn’t mean much. In all discussions, media seems to have overlooked that they can’t report on these comments in their dispatches. Also, print media will have to think twice before using these words in their articles.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 14, 2022
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों या वाक्यों का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है. लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं.’
वहीं, नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिन्हित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाएगा कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया है।
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